तुम अभी इस वक़्त मुक्त हो सकते हो मगर उसमें एक यदि लगा हुआ है. यह यदि तुम्हे इस देह से जोड़ा हुआ है.
तुम जब सफ़र पर जाते हो तो सारा सामान पेटी मैं भरकर उसे कंधे पर रख कर, taxi ऑटो या बस से पहले स्टेशन जाते हो फिर ट्रेन के प्लात्फोर्म पर जाते हो, फिर अपने निर्धारित स्थान पर जाकर बैठ जाते हो. तब जाके विश्राम लेते हो. यह नहीं के आप रेल गाडी मैं आगे भागते हो ओर उम्मीद करते हो की आप जल्दी से अपनी मंजिल तक पहुँच जाओगे.
मुक्ति पाने के लिए भी आप को इतनी तो मेहनत करनी पड़ेगी. अपने तमो गुण से बहार आकर थोडा रजो गुण मैं तो जाना होगा, फिर जब थक जाओगे तो विश्राम करोगे. उस विश्राम मैं मुक्ति अवस्य मिलेगी. क्या आज तक किसी को बैठे बैठे तमो गुण मैं बंधनों से मुक्ति मिली है.
इतनी मेहनत करने के बाद तुम चित्त मैं आराम करो तब तुम्हे चेतना की अनुभूति होगी. तभी सुख की प्राप्ति होगी, तभी बंधन से मुक्ति होगी.
न तो तुम यह शरीर हो, न मन हो, न ही तुम किसी वर्ण के हो जैसे ब्रह्मण, न ही किसी धर्म के हो जैसे हिन्दू मुसलमान, न तो किसी श्रम के हो जैसे गृहस्थ आश्रम/वृद्ध आश्रम, न ही तुम आखोँ से दिखने वाले द्रश्य हो .
न तुम करता हो, न ही भोक्ता हो, न ही तुम मान अपमान से प्रभावित होते हो, न तुम धर्मं ओर न ही अधर्म मैं बंधे हो. यह सब इस देह का है, इस समाज का है. उसे अपना कर्तव्य करने दो.
तुम सिर्फ एक साक्षी हो. तुम इस शरीर मैं चेतना हो. तुम सब देखते हो. तुम दृष्टा हो. तुम निराकार हो. तुम यह खेल हमेशा से देखते आये हो ओर देखते रहोगे. तुम विश्व साक्षी हो. स्व का अर्थ होता है जो चल रहा है या घटित हो रहा है , जिसमें कल था, आज है ओर कल होगा. उस हर आती जाती घटना के तुम साक्षी हो.
तुम हमेशा इस शरीरके संग हो लेकिन फिर भी इससे असंग हो.
देखना हमें जनम से आता है, किसी बच्चे से पूछो की मैं कौन हूँ तो वह कहेगा की तुम यह दिख रहे हो या वह दिख रहे हो. फर्क सिर्फ इतना है की हम भूल जाते हैं की हम देख रहे हैं.
जैसे की एक बच्चे को वैद्य के पास ले जाओ तो बहार उसका नाम देखकर ही वह रोने लगेगा, क्योंकि उसने सुई लगाने के दर्द को देख लिए है. वैसे ही एक वयस्क डॉक्टर से बोलता है की मुझे गोली वोली नहीं चाईए, बस मुझे एक सुई लगा दो क्यूंकि मैं जल्दी ठीक होना चाहता हूँ.
एक धान के अन्दर चावल होता है, लेकिन अगर तुम अपने को भूसा समझ बैठे हो तो इसमें चावल का क्या दोष. वह तो हमेशा से धवल,निरंजन ओर स्वक्ष रहा है. तुम्हे धीरे धीरे प्रयत्न से इस आवरण को घिसना होगा ओर उस चावल की सफेदी मैं पहुंचना होगा. इस भूसे रूपी शरीर में मत फंश जाना.
तुम जब सफ़र पर जाते हो तो सारा सामान पेटी मैं भरकर उसे कंधे पर रख कर, taxi ऑटो या बस से पहले स्टेशन जाते हो फिर ट्रेन के प्लात्फोर्म पर जाते हो, फिर अपने निर्धारित स्थान पर जाकर बैठ जाते हो. तब जाके विश्राम लेते हो. यह नहीं के आप रेल गाडी मैं आगे भागते हो ओर उम्मीद करते हो की आप जल्दी से अपनी मंजिल तक पहुँच जाओगे.
मुक्ति पाने के लिए भी आप को इतनी तो मेहनत करनी पड़ेगी. अपने तमो गुण से बहार आकर थोडा रजो गुण मैं तो जाना होगा, फिर जब थक जाओगे तो विश्राम करोगे. उस विश्राम मैं मुक्ति अवस्य मिलेगी. क्या आज तक किसी को बैठे बैठे तमो गुण मैं बंधनों से मुक्ति मिली है.
इतनी मेहनत करने के बाद तुम चित्त मैं आराम करो तब तुम्हे चेतना की अनुभूति होगी. तभी सुख की प्राप्ति होगी, तभी बंधन से मुक्ति होगी.
न तो तुम यह शरीर हो, न मन हो, न ही तुम किसी वर्ण के हो जैसे ब्रह्मण, न ही किसी धर्म के हो जैसे हिन्दू मुसलमान, न तो किसी श्रम के हो जैसे गृहस्थ आश्रम/वृद्ध आश्रम, न ही तुम आखोँ से दिखने वाले द्रश्य हो .
न तुम करता हो, न ही भोक्ता हो, न ही तुम मान अपमान से प्रभावित होते हो, न तुम धर्मं ओर न ही अधर्म मैं बंधे हो. यह सब इस देह का है, इस समाज का है. उसे अपना कर्तव्य करने दो.
तुम सिर्फ एक साक्षी हो. तुम इस शरीर मैं चेतना हो. तुम सब देखते हो. तुम दृष्टा हो. तुम निराकार हो. तुम यह खेल हमेशा से देखते आये हो ओर देखते रहोगे. तुम विश्व साक्षी हो. स्व का अर्थ होता है जो चल रहा है या घटित हो रहा है , जिसमें कल था, आज है ओर कल होगा. उस हर आती जाती घटना के तुम साक्षी हो.
तुम हमेशा इस शरीरके संग हो लेकिन फिर भी इससे असंग हो.
देखना हमें जनम से आता है, किसी बच्चे से पूछो की मैं कौन हूँ तो वह कहेगा की तुम यह दिख रहे हो या वह दिख रहे हो. फर्क सिर्फ इतना है की हम भूल जाते हैं की हम देख रहे हैं.
जैसे की एक बच्चे को वैद्य के पास ले जाओ तो बहार उसका नाम देखकर ही वह रोने लगेगा, क्योंकि उसने सुई लगाने के दर्द को देख लिए है. वैसे ही एक वयस्क डॉक्टर से बोलता है की मुझे गोली वोली नहीं चाईए, बस मुझे एक सुई लगा दो क्यूंकि मैं जल्दी ठीक होना चाहता हूँ.
एक धान के अन्दर चावल होता है, लेकिन अगर तुम अपने को भूसा समझ बैठे हो तो इसमें चावल का क्या दोष. वह तो हमेशा से धवल,निरंजन ओर स्वक्ष रहा है. तुम्हे धीरे धीरे प्रयत्न से इस आवरण को घिसना होगा ओर उस चावल की सफेदी मैं पहुंचना होगा. इस भूसे रूपी शरीर में मत फंश जाना.
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